अब जाना है अब जाना है प्रीतम का रूप पिछाना है ॥ टेक ॥
गल विच हीरा हर अमोली मैं ढूंडू बाहिर में भोली
पड़दा दूर हुया जब चोली दामन बीच छिपाना है ॥ १
बालक झूले बीच हिंडोरा देती फिरूं नगर ढंडोरा
जब मन निश्चय होया मोरा घर भीतर दरसाना है ॥ २
मृग नाभी में है कस्तूरी सूंघत घास फिरे बनदूरी
बिन जाने निज भेद जरूरी बिरथा चिर भटकाना है ॥ ३
सतगुरु पूरा भेद बताया मेरे मनका भरम मिटाया
ब्रम्‍हानंद पास दरसाया नैन से नैन मिलाना है ॥ ४