चालो सखी री संतन संग करें ॥ टेक ॥
सतसंगत है सार जगत में क्यों अवसर बिसरें ॥
छोड काज पुन लाज जगत की हरिपद ध्यान धरें ॥
संशय सकल दूरकर मनसे ज्ञान प्रकाश करें ॥
ब्रम्‍हानंद स्वरुप जानकर भवजल सिंधु तरें ॥