कैसे सखी री मनुवा धीर धरे ॥ टेक ॥
जिनके संग विविध सुख लीने सो हमसें बिछुडे ||
हमसें प्रीत लगाकर मोहन मथुरा वास करे ॥
उनके रासबिलास सुमरकर नैनन नीर भरे ॥
ब्रम्‍हानंद बहुर नहि आये हमरी सुध बिसरे ॥