मैं हूं शरण तुमारी प्रभुजी मैं हूं शरण तुमारी जी ॥ टेक ॥
सूरज तारे पर्वत भारे देव दनुज नरनारी जी
सागर सरवर भूमि तरुवर तेरी रचना सारीजी ॥ १
जलथल गामी अंतर्यामी भुवन चतुर्दश धारीजी
सबगुण खाना दया निधाना सब जीवन हितकारी जी ॥ २
ऋषिमुनि ध्यावें पार न पावें महिमा तुमारी भारी जी
किस बिध गावूं भेद न पावूं दुर्बल बुद्धि हमारी जी ॥ ३
नाम तुमारा सब सुखकारा देत पदार्थ चारीजी
ब्रम्‍हानंद दान मोहे दीजे जन्म मरण भय हारी जी ॥ ४