मन भाति है मन भाति है अनहद की टेर सुहाती है ॥ टेक ॥
गगन महल में नौबत बाजे ऊपर शिखर घटाघन गाजे
चंचल बिजली चमक बिराजे बूंद सुधा बरसाती है ॥ १
बिन दीपक जहां जोत उजारा कोटि भानु शशि चमके तारा
खेल करे नित प्रीतम प्यारा सखियां मिलकर गाती हैं ॥ २
उलटा मारग कठिन दुहेला को इक पहुंचे गुरु का चेला
सूरत शब्द का होवे मेला प्याला प्रेम पिलाती है ॥ ३
भ्रमर गुफा में सेज बिछाई योग नींद तन सुध बिसराई
ब्रम्‍हानंद परम सुखदाई पूरण रूप समाती है ॥ ४