मनुवा रे हरिगुण गान करो ॥ टेक ॥
कलि केवल हरिनाम परमपद मूरख क्यों बिसरो ॥
यह संसार स्वप्न की माया बिरथा पचन मरो ॥
काल घटा सिर ऊपर गर्जत फिर किम धीर धरो ॥
ब्रम्‍हानंद शरण पड़ प्रभुकी भवभय दूर हरो ॥