सुन सखी वर्षा ऋतु मन भाई
कामकाज सब छोड जगत के निशदनी सुरत जमाई ॥ टेक ॥
त्रिकुटि महल में चड़ कर देखा बिजली चमक दरसाई ॥
अनहद गर्जन होत गगन में सुनसुन मन हरषाई ॥
अमृत बूंद पडत सुखदायक भवभय तपत मिटाई ॥
ब्रम्‍हानंद स्वरुप समायो तन मन सुध बिसराई ॥