सुनो सखी अब वर्षा ऋतु आई ॥ टेक ॥
सुंदर मेघ गगन पर छाये शीतल पवन सुहाई ॥
बिजली चमक डरावत मनको गर्ज गर्ज बरसाई ॥
पर्वत से जल झरत निरंतर नदियां बेग सवाई ॥
चहुं दिशि वृक्ष लता बन फूले सकल भूमि हरषाई ॥
ब्रम्‍हानंद जगत हित कारण ईश्वर वृष्टि बनाई ॥