सुनो सखी री आज स्वप्न की बात ॥ टेक ॥
स्वप्ने में हरिदर्शन दीना तेजपुंज मय गात ॥
शीश किरीट श्रवणमणि कुंडल गल बनमाल सुहात ॥
शंख चक्र कर पद्म बिराजे चंद्र वदन मुसकात ॥
ब्रम्‍हानंद निरख छवि सुंदर हर्ष हिये न समात ॥