तेरो प्रभुजी किस बिध दर्शन पावुं ॥ टेक ॥
मैं मतिमंद सकल गुणहीना जी सन्मुख होत लजावुं ॥
जपतप योग यज्ञ नहि कीने जी कैसे पात्र कहावुं ॥
मैं अनाथ तुम नाथ जगत के जी क्यों कर तोहे रिझावुं ॥
ब्रम्‍हानंद दयाल दयाकर जी भवसागर तर जावुं ॥