सुनी बंसरी तेरी तो भेद खुला, तू और नहीं मैं और नहीं ।

सोऽहं की तो निकले आवाज़ सदा, तू और नहीं मैं और नहीं ।।

1. सातों स्वरों में जो बोले हवा, वो तो पूरण तेरा रूप ही था।

क्या मीठे सुरों का वो सुर था , तू और नहीं मैं और नहीं ।।

2. किया प्रेम में अपना आप तबाह, तेरी चाक रही फिर एक बता।

तू मुझसे न मैं हूँ तुझसे जुदा, तू और नहीं मैं और नहीं ।।

3. तेरे प्रेम में दिल को जला बैठा, सब अपना आप भुला बैठा।

हुई दूर दुई तो मैं बोल उठा, तू और नहीं मैं और नहीं ।।

4. गंगा से एक जो लहर उठी, बैठी तो वो ये गाने लगी।

जल का मैं तो एक रूप ही था, तू और नहीं मैं और नहीं ।।

5. तेरे प्रेम का रंग चढ़ा दिल पर, न रहा दिल में किसी का भी डर।

तद्रूप होकर गाने लगा, तू और नहीं मैं और नहीं ।।