नैया मोरी नीके चालन लागी, आंधी मेघ कछु नहीं व्योपे।
चढ़े संत बड़भागी।

1. उथले रहे तो डर कछु नाहीं, नहीं गहिरे को संसा।
उलट जाये तो बाल ना बांका, यां का अजब तमाशा।

2. ओसर लागे तो पर्वत बोझा, कबहुँ ना लागे भारी।
धन सतगुरु जिन युक्ति, बताई तांके मैं बलिहारी। ।

3. सार शबद की नैया बनी है, मोह की मकड़ी लाया।
गुण लिहाज की हाजत नाहीं, ऐसा साज बनाया। ।

4. कहैं कबीर जो बिन सिर खेवे, सो ये सुमति बखाने।
या बहु हित की अकथ कथा है, बिरले खेवठ जाने। ।