आज मेरी लाज हरि आयके बचाइये ॥ टेक ॥ कौरवों की सभा बीच जुड़े सबी लोक...

देख सखी कृष्णचंद कि छवि सुहावनी ॥ टेक ॥ सिर पे मुकुट अलक भाल श्रवणकुंडल दृगरसाल...

वृंदावन कुंज भवन नाचत गिरधारी ॥ टेक ॥ धरधरधर मुरली अधर भरभर स्वर मधुरमधुर कर कर...

हेरी सखी आज मुझे शाम से मिलाय दे ॥ टेक ॥ मोरमुकुट शीश धरे मकर कुंडल...

आज सखी शाम सुन्दर बंसिया बजावे ॥ टेक ॥ मोरमुकुट सिर चढ़ाय पग में नूपुर सुहाय...

राम सुमर राम सुमर राम सुमर भाई ॥ टेक ॥ रजा रानी वजीर पंडित ज्ञानी सुधीर...

भजरे मन राम चरण निश दिन सुखदाई ॥ टेक ॥ नरतन यह बार बार जग में...

पूरण प्रॆम लग़ा दिल में जब नेम का बंधन छूट गया ॥ टेक ॥ कोई पंडित...

आशक मस्त फकीर हुया जब क्या दिलगीरपणा मन में ॥ टेक ॥ कोई पूजत फूलन मालन...

प्रीतम प्रीत लगी तुझसे न भुलाना मुझे मिल जाना सही ॥ टेक ॥ तेरे लिये सब...

पूरण ब्रम्ह सनातन तुं महादेव सदा शिव शंकर है ॥ टेक ॥ अंग विभूत बिराज रही...

प्रीत की रीत न जाने सख़ी वो तो नंद को बालक सांवरिया ॥ टेक ॥ जमुनातट...