देखो सख़ी बिंदराबन में वो तो बंसरी शाम बजावत है ॥ टेक ॥ धर्मके पालन कारण...

ऐसी करी गुरुदेव क़ृपा मेरा मोह का बंधन तोड़ दिय़ा ॥ टेक ॥ दौड रहा दिन...

दे दे पिया दर्शन तो मुझे मैं तो शरण तुमारी आय पडी ॥ टेक ॥ मात...

हेरी सखी चल ले चल तुं अब देश पिया का दिखाय मुझे ॥ टेक ॥ ढूंढत...

हेरी सखी बतलाय मुझे पिया के मन भावन कि बतियां ॥ टेक ॥ गुणहीन मलीन शरीर...

विश्वपति जगदीश्वर तुं शरणागत पालन कारण है ॥ टेक ॥ तेरी रची सब है रचना गिरि...

ध्यान का वादा करके सजन तैने ध्यान लगाना छोड़ दिया ॥ टेक ॥ शीश तले पग...

दीनदयाल दया करके भव सागर से कर पार मुझे ॥ टेक ॥ नीर अपार न तीर...

नाम लिया हरी का जिसने तिन और का नाम लिया न लिया ॥ टेक ॥ पशु...

नाम हरी का लीना नहीं तैने मूरख काम निकाम किया ॥ टेक ॥ बालपणो इस खेलन...

शंकर तेरी जटा में बहती है गंगधारा । काली घटा के अंदर जिम दामिनी उजारा ॥...

मन क्या भुला रहा है दुनियां कि मौज माहीं करके बिचार देखो कछु सार वस्तु नाहीं...