हरिदर्शन की मैं प्यासी रे मेरी सुनिये अरज अविनाशी रे ॥ टेक ॥ निर्गुण से मोहे...

हरिभजन बिना सुखनाही रे नर क्यों बिरथा भटकाई रे ॥ टेक ॥ काशी गया द्वारका जावे...

हरिनाम सुमर ले हरिनाम सुमरले हरिनाम सुमरले पछतायगा ॥ टेक ॥ मानुष काया दुर्लभ पाया पलक...

तुम पडोरी मैना मधुर बैना हरिका नाम सार ॥ टेक ॥ तजके तेरा मालिया रे जंगल...

तेरी उमर बीती जाय रे प्रनिराम सुमर ले ॥ टेक ॥ बूंद बूंद टपकता रे ज्यों...

अब तो अब तो सुनिये मेरी नाथ बिनती दीनदयालजी ॥ टेक ॥ तुमने सकल जगत उपजाया...

जो भजे हरि को सदा सोई परमपद पायगा ॥ टेक ॥ देखके माला तिलक अरु छाप...

अब तो सुमर नर रामचरण को जन्म मरण दुःख दूर करण को ॥ टेक ॥ चौरासी...

अब तो सुनो प्रभु अरज हमरिया शरण पडा मैं आय तुमरिया ॥ टेक ॥ सकल जगत...

हरि का भजन करले मेरी मतिया भजन बिना मिले री शुभ गतिया ॥ टेक ॥ क्या...

दे दर्शन मोहे आज संवरिया बिन दर्शन मन धीर न धरिया ॥ टेक ॥ सांवरी सुरत...

सुनो सुनो सखी ज्ञान बिचारना रे भवसागर से पार उतारणा रे ॥ टेक ॥ पांच तत्व...