New Release : Jai Siya Ram | Sankirtan

1872697 views | 10 Apr 2022

Immerse yourself in the blissful sankirtan, Jai Siya Ram by Anandmurti Gurumaa. Celebrate, chant and embrace the blissful name of Rama and witness the illusionary boundaries dissolving away, plunging one into the depths of inner repose and inundating divine love. जय सिया राम जय जय सिया राम । बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।। सतसंगत मुद मंगल मूला। सोइ फल सिधि सब साधन फूला।। मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी।। आत्माधारं स्वतन्त्रं च सर्वशक्तिं विचिन्त्य च । चिन्तयेच्चेतसा नित्यं श्रीरामःशरणं मम ॥ ४॥ एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा।। ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना।। नित्यात्म गुण संयुक्तो नित्यात्मतनुमण्डितः । नित्यात्मकेलिनिरतः श्रीरामःशरणं मम ॥ ५॥ बंदउँ नाम राम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।। बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो।। गुणलीलास्वरूपैश्च मितिर्यस्य न विद्यते । अतोवाङ्मनसा वेद्यः श्रीरामःशरणं मम ॥ ६॥ नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी।। अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी।। नित्यमुक्तजनैर्जुष्टो निविष्टः परमे पदे । पदं परमभक्तानां श्रीरामः शरणं मम ॥ ९॥ रूप बिसेष नाम बिनु जानें। करतल गत न परहिं पहिचानें।। सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। आवत हृदयँ सनेह बिसेषें।। कर्ता सर्वस्य जगतो भर्ता सर्वस्य सर्वगः । आहर्ता कार्य जातस्य श्रीरामःशरणं मम ॥ ७॥ नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी।। ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा।। ऋषिरूपेण यो देवो वन्यवृत्तिमपालयत् । योऽन्तरात्मा च सर्वेषां श्रीरामःशरणं मम ॥ १२॥

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