घर जाना है घर जाना है प्रीतम के देस सिधाना है ॥ टेक ॥ प्रीतम तैनूं...

बलहारी मैं बलहारी मैं गुरु चरणकमल पर वारी मैं ॥ टेक ॥ तिमर भरे दोऊ नैना...

तब पावोगे तब पावोगे जब गुरु की शरण सिधावोगे ॥ टेक ॥ भरा समुंदर गहरा पानी...

अब पाया है अब पाया है मुझे सतगुरु भेद बताया है ॥ टेक ॥ सोना जेवर...

अब जाना है अब जाना है प्रीतम का रूप पिछाना है ॥ टेक ॥ गल विच...

कित जावुं मैं कित जावुं मैं अब कैसे प्रेम निभावुं मैं ॥ टेक ॥ मैं जाना...

कित जावोगे कित जावोगे कबतक निजरूप छिपावोगे ॥ टेक ॥ छोडूं मैं सब घरके काजा दूर...

नहि आते हो नहि आते हो क्यों अपना रूप छिपाते हो ॥ टेक ॥ कितवल ढूंडन...

ऐसा ज्ञान हमारा साधो ऐसा ज्ञान हमारा रे ॥ टेक ॥ जड चेतन दो बस्तु जगत...

चेतन चमक नियारी साधो चेतन चमक नियारी रे ॥ टेक ॥ हाड मांस की देह बनी...

मनकी बात न मानो साधो मनकी बात न मानो रे ॥ टेक ॥ मन चंचल मर्कट...

नाम निरंजन गावो साधो नाम निरंजन गावो रे ॥ टेक ॥ मानुष देह मिली है दुर्लभ...