About the book
श्रीमद्भगवद्गीता धर्मिक ग्रंथों में शिरोमणि ग्रंथ के रूप में विश्व विख्यात है। यह एक ऐसा दिव्य गीत है जो भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के मध्य युद्धभूमि में हुए संवाद के रूप में संगृहीत है। इस पवित्र ग्रंथ में सांख्य योग, कर्म योग, भक्ति योग, आत्मसंयम योग, संन्यास योग आदि के माध्यम से दिया गया यह अत्युत्तम संदेश युग एवं समय की समस्त सीमाओं को लाँघकर जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है। ‘गीता’ संन्यासियों और त्यागियों के लिए तो महत्त्वपूर्ण है ही, यह हर उस साधारण मनुष्य के लिए भी उपयोगी है जिसने जीवन के सुख-दुःख, संयोग-वियोग, लाभ-हानि, जय-पराजय को भोगना है। यह अनमोल ग्रंथ अनेक प्रश्नों, जैसे- धर्म क्या है? दैवी सम्पदा क्या होती है? आसुरी सम्पदा क्या होती है? इस संसार में हमारा उद्देश्य क्या है? हमारे कर्म कैसे होने चाहिये? हम दुःखी क्यों हैं? मनुष्य किससे प्रेरित हुआ पाप-कर्म का आचरण करता है? द्वंद्वात्मक स्थितियों में हमारे क्या कर्तव्य होने चाहिये? आदि के उत्तर हमें देता है। इसके जीवनोपयोगी सूत्रों को आत्मसात् करने के लिये शब्दों को पढ़ लेना ही पर्याप्त नहीं है, इन शब्दों में छिपे मर्म को, ऊर्जा को, संकल्प को अनुभव करना अति आवश्यक है। श्रीमद्भगवद्गीता के 700 श्लोकों में आया प्रत्येक शब्द ज्ञान-रस से परिपूर्ण है। ज्ञान-रस की इस अमृतधारा में हम अवगाहन कर सकें, इसलिए करुणा व ज्ञान का प्रतिरूप, रहस्यदर्शी संत, गुरुदेव आनन्दमूर्ति गुरुमाँ द्वारा हर श्लोक की व्याख्या बहुत सरल एवं सुबोध शब्दों में की गई है। ‘गीता’ के मूल श्लोक संस्कृत में होने के कारण बहुत-से पाठक इनको पढ़ने में कठिनता और नीरसता का अनुभव करते हैं, परन्तु पूज्य गुरुदेव द्वारा दृष्टान्तों के माध्यम से, बहुत तार्किक ढंग से दी गई व्याख्या को जब आप पढ़ेंगे तो हर शब्द को अपने भीतर धारण करते जायेंगे। श्रद्धा, भक्ति व समर्पण से परिपूर्ण होकर इस प्रस्तुत ग्रंथ का अध्ययन व मनन करते हुए मुक्ति-पथ पर अग्रसर हों।