अचरज देखा भारी साधो अचरज देखा भारी रे ॥ टेक ॥
गगन बीच अमृत का कूवा झरे सदा सुखकारी रे
पंगु पुरुष चढे बिन सीढ़ी पीवे भरभर झारी रे ॥ १
बिना बजाये निशदिन बाजें घंटा शंख नगारी रे
बहरा सुनसुन मस्त होत है तन की खबर बिसारी रे ॥ २
बिन भूमी के महल बना है तामें जोत उजारी रे
अंधा देखदेख सुख पावे बात बतावे सारी रे ॥ ३
जीता मरकरके फिर जीवे बिन भोजन बलधारी रे
ब्रम्हानंद संतजन बिरला समझे बात हमारी रे ॥ ४