देखा अजब खिलारी साधो देखा अजब खिलारी रे ॥ टेक ॥
मिट्टी के सब खेल बनाये तिनमें पवन पसारी रे
बोलत चालत फिरत निरंतर कर्म करे बलकारी रे ॥ १
एक खंड के दो टुक्की ने एक पुरुष इक नारी रे
देव दैत्य नर पशुपक्षीगण रूप अनेक विहारी रे ॥ २
आप बनावे आप सजावे आपहि करे तियारी रे
आपहि भोगे आप भुगावे भुवन चतुर्दश चारी रे ॥ ३
गुप्त रूप प्रगट होवे नटवर मूरत धारी रे
ब्रम्‍हानंद गुप्त फिर होवे महिमा अचरज भारी रे ॥ ४