जिधर को देखुं जहां को देखुं
तुं एक मुझको दिखा रहा है ॥ टेक ॥
जमीपे तुं है गगन में तुं है पवन में पानी अगन पूरण ।
वो चांद सूरज सितारे बिजली में तेज तेरा समा रहा है ॥ १ ॥
नदी समुन्दर पहाड जंगल न खाली तुझसे जगा है कोई ।
चराचर में वो नार नरमें स्वरुप तेरा सुहा रहा है ॥ २ ॥
मिले न आदि न अंत मुझको न मध्य तेरा दिशा में चारों ।
समस्त दुनिया को तुं निरंतर कला से तेरी चला रहा है ॥ ३ ॥
न बेद ग्रंथा न सर्व पंथा ऋषि मुनीश्वर न पार पावें ।
ब्रम्हानन्दा परम आनंदा जगत में सारे में छा रहा है ॥ ४ ॥
Jidhar ko dekhun jahaan ko dekhun
Tun ek mujhako dikhaa rahaa hai ॥ Tek ॥
Jameepe tun hai gagan mein tun hai pavan men paanee agan pooran .
Vo chaand sooraj sitaare bijalee mein tej teraa samaa rahaa hai ॥ 1 ॥
Nadee samundar pahaad jangal na khaalee tujhase jagaa hai koee .
Charaachar mein vo naar naramein svarup teraa suhaa rahaa hai ॥ 2 ॥
Mile na aadi na ant mujhako na madhy teraa dishaa mein chaaron .
Samast duniyaa ko tun nirantar kalaa se teree chalaa rahaa hai ॥ 3 ॥
Na bed granthaa na sarv panthaa rishi muneeshvar na paar paavein .
Bramhananda param aanandaa jagat mein saare mein chhaa rahaa hai ॥ 4 ॥