नाम निरंजन गावो साधो नाम निरंजन गावो रे ॥ टेक ॥
मानुष देह मिली है दुर्लभ काहे वृथा गमावो रे
नाम जहाज बैठकर दुस्तर भवसागर तर जावो रे ॥ १
परकी जीभ नाम बिन दामा फिर क्यों देर लगावो रे
ऊठत बैठत सोवत जागत मन सें नहि बिसरावो रे ॥ २
ध्रुव प्रह्लाद विभीषण नारद सनकादिक मन भावो रे
अजामिल गजगणिका तारे दृढ़ निश्चय मन लावो रे ॥ ३
कलि केवल इक नाम अधारा दूजा भरम भुलावो रे
ब्रम्हानंद नाम बिन हरिके कबहुं मोक्ष नहि पावो रे ॥ ४