नज़र भर देखले मुझको शरण में आ पड़ा तेरी || टेक ||
तेरा दरबार है ऊंचा कठिन जाना है मंज़िल का
हज़ारों दूत मारग में खड़े हें पंथ को घेरी ||
नही है ज़ोर पैरों में न दूजा संग में साथी
सहारा दे मुझे अपना करो नहि नाथ अब देरी ||
नही है भोग की वांछा न दिल में मोक्ष पाने की
प्यास दर्शन की है मन में सफल कर आशा को मेरी ||
क्षमा कर दोष को मेरे बिरदको देखके अपने
वो ब्रम्हानंद कर करुणा मिटा दे जन्म की फेरी ||