निर्गुण पंथ निराला साधो निर्गुण पंथ निराला रे ॥टेक ॥
नही तिलक नहि छाप धारणा नहि कंठी नहि माला रे
निशदिन ध्यान लगे हिरदे में प्रगटे जोत उजाला रे ॥ १
नहि तीरथ नहि बरत घनेरे नहि तप कठिन कराला रे
सहजे सुमरण होवत घट में सोहं जाप सुखाला रे ॥ २
नहि मूरत नहि है कछु सूरत रूप न रंगत वालारे
सब जग व्यापक घटघट पूरण चेतन पुरुष बिशाला रे ॥ ३
नहि उत्तम नहि नीच न मध्यम सब समान जगपाला रे
ब्रम्हानंद रूप पहचानो तजो सकल भ्रम जाला रे ॥ ४