शरण पडे कि लाज तुम राखो भगवाना ॥ टेक ॥
जप तप योग यज्ञ नहि कीने नहि तीरथ दाना
बिरथा बीत गई सब उमरा विषयन भरमाना ॥
सतसंगत में बैठ तुमारा किया न गुणगाना
भवसागर जल दुस्तर भारी कैसे तर जाना ॥
चौरासी लख जीव जून में पुन पुन भटकाना
तुमरे भजन बिना नहि कबहुं मोक्ष पाना ॥
दीनदयाल दया के सागर तुम सब गुणखाना
ब्रम्हानंद मैं दास तुमारो मुझे न बिसराना ॥
Sharn pade ki laaj tum raakho bhagvaanaa ॥ tek ॥
Jap tap yoga yjny nhi kine nhi tirth daanaa
Birthaa bit gaee sb umraa visyn bhrmaanaa ॥
Satsangat mein baith tumaaraa kiyaa n gungaaanaa
Bhvsaagar jl dustr bhaari kaise tr jaanaa ॥
Chauraasi lkh jiv jun mein pun pun bhatkaanaa
Tumre bhajn binaa nhi kbhun moksh paanaa ॥
Dindyaal dyaa ke saagar tum sb gunkhaanaa
Bramhaannd main daas tumaaro mujhe n bisraanaa ॥