सोहं शब्द बिचारो साधो सोहं शब्द बिचारो रे ॥ टेक ॥
माला करसे फिरत नही है जीभ न वर्ण उचारो रे
अजपाजाप होत घट मांही ताकी ओर निहारो रे ॥
हं अक्षर से स्वास उठावो सो से जाय बिठारो रे
हंसो उलट होत है सोहं योगीजन निर्धारो रे ॥
सब इक्कीस हजार मिलाकर छेसो होत शुमारो रे
अष्ट पहर में जागत सोवत मन में जपो सुखारो रे ॥
जो जन चिंतन करत निरंतर छोड जगत व्यवहारो रे
ब्रम्हानंद परम पद पावे मिटे जनम संसारो रे ॥