सुनले प्रभु अरज हमारी रे सुनले प्रभु अरज हमारी॥
दीनदयाल सकल दुःख भंजन ।
अशरणशरण परम सुखदायक जन्ममरण भवबंधन हारी ॥ टेक ॥
तुम सकल जगत के स्वामी हो । घटघट के अंतरयामी हो ।
सब विश्व चराचर गामी हो ।
जल थल गिरिवर नदियां सागर तुमरी अचरज रचना सारी ॥ १ ॥
कहीं सूरज चांद सितारा है । कहीं बिजली का चमकारा है ।
कहीं भुवन चतुरदश न्यारा है ।
सुर नर पशुगण जीव चराचर सब जग पालक नित हितकारी ॥ २ ॥
कोई निगमागम गुण गाते हैं कोई निर्गुण रूप बताते हैं ।
कोई मुनिजन ध्यान लगाते हैं ।
तुमरा अंत पार नहि पावें अचरज परबल महिमा भारी ॥ ३ ॥
तुम परमधाम अविनाशी हो सतचित सुखरूप विलासी हो ।
व्यापक विश्वविकासी हो ।
ब्रम्‍हानंद करो करुणा अब शरण पडो मैं जाय तुमारी ॥ ४ ॥


Sunle prabhu arj hmaari re sunle prabhu arj hmaari॥
Dindayaal askl duhkh bhanjn .
Asharansharan prem sukhdaayk janmmaran bhvbandhn haari ॥ tek ॥
Tum sakl jagat ke svaami ho . ghatghat ke antryaami ho .
Sb vishv charaa char gaaami ho .
Jal thal girivar ndiyaan saagar tumri achrj rchnaa saari ॥ 1 ॥
Khin surj chaand sitaaraa hai . khin bijli kaa chmkaaraa hai .
Khin bhuvn chturdsh nyaaraa hai .
Sur nar pshugan jiv chraachr sb jga paalk nit hitkaari ॥ 2 ॥
Koee nigamaagam gaun gaaate hain koee nirgaun rup btaate hain .
Koee munijn dhyaan lgaaate hain .
Tumraa ant paar nhi paaven achrj prbl mhimaa bhaari ॥ 3 ॥
Tum prmdhaam avinaashi ho stchit sukhrup vilaasi ho .
Vyaapk vishvvikaasi ho .
Bram‍haannd kro krunaa ab shrn pdo main jaay tumaari ॥ 4 ॥