ऐसा जोगु कमावहु जोगी।।
जप तप संजमु गुरमुखि भोगी।।
मुंद्रा मोनि दइआ करि झोली,
पत्र का करहु बीचारू रे।।
खिंथा इहु तनु सीअउ अपना,
नामु करउ आधारू रे।।
बुधि बिभूति चढावउ अपुनी,
सिंगी सुरति मिलाइ।।
करि बैरागु फिरउ तनि नगरी,
मन की किंगुरी बजाइ।
पंच ततु लै हिरदै राखहु,
रहै निरालम ताड़ी।।
कहतु कबीरू सुनहु रे संतहु,
धरमु दइआ करि बाड़ी।।