अंम्रित नाम परमेसरु तेरा, जो सिमरै सो जीवै।।
जिस नो करमि परापति होवै, सो जनु निरमलु थीवै।।
पारब्रहमु होआ सहाई, कथा कीरतनु सुखदाई।।
गुर पूरे की बाणी, जपि अनदु करहु नित प्राणी।।
हरि साचा सिमरहु भाई।।
साध संगि सदा सुखु पाईऐ, हरि बिसरि न कबहू जाई।।
बिघन बिनासन सभि दुख नासन, गुर चरणी मनु लागा।।
गुण गावत अचुत अबिनासी अनदिनु हरि रंगि जागा।।
मन इछे सेई फल पाए, हरि की कथा सुहेली।।
आदि अंति मधि नानक कउ, सो प्रभु होआ बेली।।