गुरु नानकु जिन सुणिया पेखिआ
से फिरि गरभासि न परिया रे।।
मैं मूरख की केतक बात है
कोटि पराधी तरिआ रे।।

कोटि ब्रहमंड को ठाकुरु सुआमी
सरब जीआ का दाता रे।।
प्रतिपालै नित सारि समालै
इकु गुनु नही मूरखि जाता रे।। 1 ।

हरि आराधि न जाना रे।।
हरि गुरु गुरु गुरु करता रे।।
हरि जीउ नामु परिओ रामदासु।। 2 ।

दीन दइआल क्रिपाल सुख सागर
सरब घटा भरपूरी रे।।
पेखत सुनत सदा है संगे
मै मूरख जानिआ दूरी रे।। 3 ।

हरि बिअंतु हउ मिति करि
वरनउ किआ जाना होइ कैसो रे।।
करउ बेनती सतिगुरु अपुने
मै मूरख देहु उपदेसो रे।। 4 ।