आपन काहे न सँवारे काजा । टेक
ना गुरु भगति साध की संगत, करत अधम निर्लाजा ।
मानुष जनम फेर नहिं पैहो, सब जीवन में राजा ॥ १
पर नारी प्यारी करि जानै , सो नर नरक समाजा ।
निजके पंथ भूलिगे भोंदू , करु चलने कै साजा ॥ २
इहाँ नहीं कोइ मीत तुम्हारा , मात पिता सुत आजा ।
ये हैं सब मतलब के साथी , काहे करत अकाजा ॥ ३
वृद्ध भये पर नाम भजतु हैं , निकसत सुरत अवाजा ।
टूटी खाट पुराना झिलँगा , पड़े रहो दरवाजा ॥ ४
ब्रम्हा विष्णु महेश डेराने , सुनत काल के राजा ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो , चढ़ले ज्ञान जहाजा ॥ ५
Aapan kaahe na sanvare kaajaa . Tek
Naa guru bhagati saadh kee sangat, karat adham nirlaajaa .
Maanush janam pher nahin paiho, sab jeevan mein raajaa ॥ 1
Par nari pyari kari janei , so nar narak samaajaa .
Nijake panth bhulige bhondu , karu chalane kai saajaa ॥ 2
Ihaan nahin koi meet tumhara , maat pitaa sut aajaa .
Ye hain sab matalab ke saathi , kaahe karat akaajaa ॥ 3
Vruddh bhaye par naam bhajatu hein , niksat surat avaajaa .
Tooti khaat purana jhilanga , pade raho darvaja ॥ 4
Bramhaa vishNu mahesh Deraane , sunat kaal ke raajaa .
Kahein kabir suno bhai saadho , chadhle gyan jahaajaa ॥ 5