चलि चलि रे भंवरा कवल पास, भवरी बोलै अति उदास। टेक
तैं अनेक पुहुप को लियो भोग, सुख उ भयो तब बढ्यौ है रोग।
हौं ज कहत तोसूं बार- बार, मैं सब बन सोधो डार -डार। १

दिनाँ चारि के सुरंग फूल, तिनहि देखि कहा रह्यो है भूल।
या वनस्पती में लागेगी आगि, अब तू जैहों खा भागि। २

पुहुप पुराने भये सूक, तब भवरहि लागी अधिक भूख।
उड़यो न जाइ बल गयो है छूटि, तब भवरी रूँनी सीस कूटि॥ ३

दह दिसि जोवै मधुप राइ, तब भवरी ले चली सिर चढ़ाई।
कहैं कबीर मन को सुभाव, राम भगति बिन जम कौ डाव। ४