डर लागै औऱ हाँसी आवै , अजब जमाना आया रे । टेक
धन दौलत लै माल खजाना, वेश्या नाच नचाया रे ।
मुट्ठी भर अन्न साधु कोइ मांगै, कहैं लाज नहि आया रे । १

कथा होत तहाँ श्रोता सोवै , वक्ता मूड़ पचाया रे ।
होय जहाँ कहीं स्वाँग तमाशा, तनिक न नींद सताया रे । २

भाँग तम्बाखू सुलफा गाँजा, सूखा खूब उड़ाया रे ।
गुरु चरणामृत ले न धारै , महुवा चाखन आया रे । ३

उलटी चलन चली दुनिया की, ताते जिय घबराया रे ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, फिर पीछे पछताया रे । ४