गगन की गुफा तहँ गैब का चाँदना, उदय औ अस्त का नाँव नाहीं। १
दिवस औ रैन तहँ नेक नहिं पाइये, प्रेम परकास के सिंध माहीं। २
सदा आनद दुःख दुंद ब्यापै नहीं, पूरनानंद भरपूर देखा। ३
भर्म और भ्रांति तहँ नेक आवै नहीं, कहैं कबीर रस एक पेखा। ४
गगन की गुफा तहँ गैब का चाँदना, उदय औ अस्त का नाँव नाहीं। १
दिवस औ रैन तहँ नेक नहिं पाइये, प्रेम परकास के सिंध माहीं। २
सदा आनद दुःख दुंद ब्यापै नहीं, पूरनानंद भरपूर देखा। ३
भर्म और भ्रांति तहँ नेक आवै नहीं, कहैं कबीर रस एक पेखा। ४