गुरु से कर मेल गंवारा, का सोवत बारम्बारा। टेक
जब पार उतरना चहिए, तब केवट से मिल रहिये।
तब उतरि जाय भवपारा, तब छूटे यह संसारा। १

जब दरशन को दिल चहिये, तब दर्पण माँजत रहिये।
जब दर्पण लागी काई, तब दरस कहाँ से पाई। २

जब गढ़ पर बजी बधाई, तब देख तमासे जाई।
जब गढ़ बिच होत सकेला, तब हंस चलत अकेला। ३

कहैं कबीर देख मन करनी, वाके अंतर बीच कतरनी।
कतरनि की गाँठि न छूटे, तब पकरि पकरि यम लूटे। ४