जाग पियारी अब का सोवै, रैन गयी दिन काहे को खोवै। टेक
जिन जागा तिन माणिक पाया, तैं बौरी सब सोय गँवाया ।
पिय तेरे चतुर तू मूरख नारी, कबहुँ न पिय की सेज सँवारी । १

तैं बौरी बौरापन कीन्हीं, जीवन भर पिय अपनो न चीन्हीं।
जाग देख पिय सेज न तेरे, तोहि छाड़ि उठ गये सबेरे । २

पिय बिन सून सेज लगे तेरे, सोच समझ तू अजहुँ न हेरे।
कहैं कबीर सोई जन जागे, शब्द बाण उर अंतर लागे। ३