जहँवा से आयो अमर वह देसवा। टेक
पानी न पौन धरती अकसवा, चाँद न सूर न रैन दिवसवा। १

ब्राह्मण छत्री न सूद्र बैसवा, मुगल पठान न सैयद सेखवा। २

जोगी न जंगम मुनि दरवेसवा, आदि न अंत न कॉल कलेसवा। ३

कहत कबीर ये सत्य संदेसवा, सार शब्द गहि चलो वह देसवा। ४