का माँगू कुछ थिर न रहाई, देखत नैन चला जग जाई। टेक
इक लाख पूत सवा लाख नाती, ता रावण घर दिया न बाती। १
लंका सो कोट समुद्र सी खाई, ता रावण की खबरि न पाई। २
आवत संग न जात संगाती, का हुआ दल बाँधे हाथी। ३
कहैं कबीर अंत की बारी, हाथ झाड़ ज्यों चले जुआरी। ४