कहतबी खूब जो रहन रजमा रहै। कहतबी खूब जो साँच बोलै। १ 

कहतबी खूब जो साँच गैले चलै, कहतबी खूब मन मैल खोलै। २ 

रहनी रजमा बिना नफा नहीं कछु, कहाँ आकास का सब्द बोलै । ३ 

कहै कबीर सुनु सब्द साँचा कहूँ, कहाँ जो प्याज का छूत छोळै। ४