काहे कूँ भीति बनाऊँ टाटी, का जानूँ कहाँ परिहैं माटी। १
काहे कूँ मंदिर महल चिनाउं, मुवा पीछे घड़ी एक रहन न पाऊँ। २
काहे को छाऊँ ऊँच ऊँचेरा। साढ़े तीन हाथ घर मेरा। ३
कहैं कबीर नर गरब न कीजै, जेता तन तेती भुँइ लीजै। ४
काहे कूँ भीति बनाऊँ टाटी, का जानूँ कहाँ परिहैं माटी। १
काहे कूँ मंदिर महल चिनाउं, मुवा पीछे घड़ी एक रहन न पाऊँ। २
काहे को छाऊँ ऊँच ऊँचेरा। साढ़े तीन हाथ घर मेरा। ३
कहैं कबीर नर गरब न कीजै, जेता तन तेती भुँइ लीजै। ४