क्या सोवै गफलत के माते, जागु जागु उठि जागु रे।
और कोई तोर काम न आवै, गुरु चरणन उठि लागु रे। टेक
उत्तम चोला बना अमोला, लगत दाग पर दाग रे।
दुइ दिन का गुजरान जगत में, जरत मोह की आग रे। १

तन सराय में जीव मुसाफिर, करता बहुत दिमाग रे।
रैन बसेरा करि ले डेरा, चलन सबेरा ताक रे । २

ये संसार विषय रस माते, देखो समुझि विचार रे।
मन भँवरा तजि विष के बन को चलु बेगम के बाग़ रे। ३

केंचुली करम लगाइ चित्त में, हुआ मनुष ते नाग रे।
पैठा नाहिं समुझ सुख सागर, बिना प्रेम बैराग रे। ४

साहेब भजै सो हंस कहावै, कामी क्रोधी काग रे।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, प्रगटे पूरण भाग रे। ५