तातैं कहिये लोकाचार, बेद कतेब कथैं व्योहार । टेक
जारि बारि करि आवे देहा, मूवाँ पीछे प्रीति स्नेहा। १
जीवत पित्रहि मारहि डंगा, मूवाँ पित्र ले घाले गंगा । २
जीवत पित्र को अन्न न खिलावै, मूवा पीछे पिंड भरावै । ३
जीवत पित्र कूँ बोले अपराध, मूवा पीछे देहि सराध । ४
कहैं कबीर मोहि अचरज आवे, कउवा खाइ पित्र क्यूँ पावे । ५