तेरा जन एकाध है कोई । टेक
काम क्रोध अरु लोभ विवर्जित, हरिपद चीन्हैं सोई । १
राजस तामस सातिग तीन्यू, ये सब तेरी माया ।
चौथे पद को जे जन चीन्हैं, तिनहि परम पद पाया । २
स्तुति निंदा आसा छाड़ै, तजै मान अभिमाना ।
लोहा कंचन सम करि देखै, ते मूरति भगवाना । ३
चितै तो माधो चिंतामणि, हरिपद रमै उदासा ।
त्रिस्ना अरु अभिमान रहित ह्वै, कहैं कबीर सो दासा । ४