टुक जिंदगी बंदगी कर लेना, क्या माया मद मस्ताना । टेक
मन दस नाज टका चार गाँठी, ऐंढ़ो टेढ़ो जात । टेक
बहुत प्रताप गाँव से पाये , दुइये टका बरात ।
दिवस चारि के करी साहिबी, जैसे बन हर पात । १

ना कोऊ लै आयो धन , ना कोऊ लै जात ।
रावन हूँ से अधिक छत्रपति, छिन में गए बिलात । २

मैं उन संत सदा थिर पूजों, जो सतनाम जपात ।
जिन पर कृपा करत हैं सतगुरु, ते सतसंग मिलात । ३

मात पिता बनिता सुत संपति, अंत न चलत संगात ।
कहत कबीर संग कर सतगुरु, जनम अकारथ जात । ४