ऐसा कोई देखा मतवाला। टेक छाक चढ़ी बिसरी सुधा पिये प्रेम पियाला।  पिवते  ही  तन  बीसरी...

आनंद मंगल गाव मोरु सजनी। भयो प्रभात बीत गइ रजनी ॥ १  नाटक चाटक बहु बिधि...

अब मैं आनंद का घर पायो॥  जब से दया भई सतगुरु की अभय निशान बजायो॥  काम...