Musafir
होशियार होय रहो मुसाफिर कज्ज़ाक फिरता गली गली । टेक इस नगरी में तीन चोर हैं...
दिन रात मुसाफिर जात चला । टेक जिनका चलना रैन बसेरा सो क्यों ग़ाफ़िल रहत परा...
अब जाग मुसाफिर नींद न करो पियारी रे ॥ टेक ॥ घडिघड़ि पलपल छिनछिन करके रैन...
तजो अब नींद रे मुसाफिर करो तयारी रे ॥ टेक ॥ इस नगरी के नौ दरवाजे...
मुसाफिर चलजाना चलजाना रे यह संसार सराय ॥ टेक ॥ इस सराय की चाल पुराणी इक...
मत सोना मुसाफिर नींद भरी ॥ टेक ॥ तुम परदेसी भूल पडे हो चोरन की नगरी...
मुसाफिर क्या सोवे अब जाग॥ टेक ॥ इन बिरछन की नहि छाया देख भुलाया बाग़ ॥...
जागो जागोरे मुसाफिर उठकर करो तियारीयां ॥ टेक ॥ सोते सगली रैन बिहाई वेला दिन चढ़ने...