ऊधो वो सांवरी सूरत नहीँ हमको दिखाते हो || टेक ||
जगत हित कारण हरि ने धरी है देह मानुष की
मनोहर मोहनी मूरत नज़र में क्यों छिपाते हो ||
कृष्णचंदर के चरणों में लगाया ध्यान है हमने
कथा तुम रूप निर्गुन की ह्में अब क्या सुनाते हो ||
तरे संसारसागर को जपे जो नाम माधव का
कठिन वो योग का साधन हमें फिर क्यों सिखाते हो ||
लगी दिल बीच में ह्मरे लगन दिन रात दर्शन की
वो ब्रम्हानंद किस कारण अबी देरी लगाते हो ||