अब मै अपनी कथा बखानो।। तप साधत जिह बिधि मोहि आनो।।
हेम कुंट परबत है जहां।। सपत स्रिंग सोभित है तहां।।
सपत स्रिंग तिह नामु कहावा।। पंडु राज जह जोग कमावा।।
तह हम अधिक तपस्सिआ साधी।। महाकाल कालिका अराधी।।
इह बिधि करत तपस्सिआ भयो।। द्वै ते एक रूप ह्वै गयो।।
तात मात मुर अलख अराधा।। बहु बिधि जोग साधना साधा।।
तिन जो करी अलख की सेवा।। ता ते भए प्रसंन गुर देवा।।
तिन प्रभ जब आइस मुहि दीआ।। तब हम जनम कलू महि लीआ।।
चित न भयो हमरो आवन कह।। चुभी रही स्रुति प्रभ चरनन मह।।
जिउ तिउ प्रभ हम को समझायो।। इम कहिके इह लोक पठायो।।
।।चौपई।।
मै अपना सुत तुहि निवाजा।। पंथ प्रचुर करबे कउ साजा।।
जहा तहा तै धरमु चलाइ।। कबुधि करन ते लोक हटाइ।।
।।दोहरा।।
ठाढ भयो मै जोरि कर, बचन कहा सिर निआइ।।
पंथ चलै तब जगत मै, जब तुम करहु सहाइ।।
।।चौपई।।
मै हो परम पुरख को दासा।। देखन आयो जगत तमासा।।
जो प्रभ जगति कहा सो कहि हों।। म्रित लोक ते मोन न रहि हों।।
इह कारनि प्रभ मोहि पठायो।। तब मै जगत जनम धरि आयो।।
जिम तिन कही तिनै तिम कहि हों।। अउर किसू ते बैर न गहि हों।।
जो हम को परमेसर उचरि हैं।। ते सभ नरक कुंड महि परि हैं।।
मो को दास तवन का जानो।। या मैं भेद न रंच पछानो।।