बहुत जनम बिछुरे थे माधउ, इहु जनमु तुम्हारे लेखे।।
कहि रविदास आस लगि जीवउ, चिर भइओ दरसनु देखे।।

हम सरि दीनु, दइआलु न तुम सरि, अब पतीआरू किआ कीजै।।
बचनी तोर मोर मनु मानै, जन कउ पूरनु दीजै।।

हउ बलि बलि जाउ रमईआ कारने।।
कारन कवन अबोल।। रहाऊ ।।