जो नरु दुख मै दुखु नही मानै।
सुख स्नेहु अरु भै नही जा कै, कंचन माटी मानै।।

नह निंदिआ, नह उसतति जा कै, लोभु मोहु अभिमाना।।
हरख सोग ते रहै निआरउ, नाहि मान अपमाना।।

आसा मनसा सगल तिआगै, जग ते रहै निरासा।।
कामु क्रोधु जिह परसै नाहनि, तिह घटि ब्रहमु निवासा।।

गुर किरपा, जिह नर कउ कीनी, तिह इह जुगति पछानी।।
नानक लीन भइओ गोबिंद सिउ, जिउ पानी संगि पानी।।